हल्बा समाज का मृत्यु संस्कार(HALBA SAMAJ KA MRITYOU SANSKAR




HALBA SAMAJ MRITYOU SANSKAAR



दोस्तों आज हम बात करेंगे हमारे हल्बा समाज में मृत्यु संस्कार की कुछ नियमों में जो परिवर्तन हुआ है वह क्यों किस लिए हुआ है उसके संबंध में चर्चा करेंगे1 उससे पहले मैं आपको बताना चाहूंगा मृत्यु संस्कार की पुरानी परंपरा और वर्तमान में हो रही मृत्यु संस्कार की परंपरा में काफी भिन्नता आ गई है जैसे पहले नई धोबी और अन्य जातियों के द्वारा समाज के कुछ गतिविधि का संपादन किया जाता था जैसे जिस घर में मृत्यु हुआ रहता  था उस घर की कपड़ा को धोबी के द्वारा साफ किया जाता था तथा नाई के द्वारा मुंडन कार्य किया जाता था परंतु वर्तमान में धोबी के द्वारा जो कपड़ा साफ किया जाता था उसके स्थान पर घर की बेटी जो बेटी विवाह होकर अन्य परिवार में जा चुकी होती है उनके द्वारा कपड़ा साफ किया जाता है जाता है तथा एक और नियम था जिसके तहत जिस परिवार में निधन हुआ है उस परिवार के लिए भोजन काम के होते तक पहुचाया जाता था,क्योकि उस परिवार में दुःख हुआ है इसलिए उनके यहाँ भोजन पहुचाया जाता था और उनके यह सोने भी जाना पड़ता था परन्तु वर्तमान में  इसके स्थान पर  उस गांव के हल्बा भाइयों की द्वारा चावल एकत्र करके एवं कुछ पैसे इकठ्ठा कर दिया जाता है जिससे काम के होते तक उस परिवार को  भोजन एवं सब्जी मिलता है 


और उस भोजन को  बाहर से आए मेहमान बेटियां जो उस घर से शादियों की गई रहती हैं उनके द्वारा बनाया जाता है तथा अगर गांव स्तर से देखें तो काम के दिन गांव वाले उस दुख वाले परिवार को लकड़ी पत्ता और कुछ रुपए सहयोग स्वरूप प्रधान करते हैं तथा उनका लेखांकन किया जाता है कि अमुक यहां के काम में इतने लोग सामान लाए और इतने लोग नहीं लाएं इन लेखा जोखा ब्यौरा का साल के अंत में परिणाम बताया जाता है तथा जो नही ले गया रहता है उसको ना ले जा पाने का कारण जानते है तथा उन्हें सामाजिक नियम का उलंघन का कुछ दंड  दिया जाता है ,जिस घर में मृत्यु होता है उस घर में रात्रि कालीन मीटिंग होता है और मीटिंग बिना बताये आना होता है क्योकि सब जानते है उनके यंहा मृत्यु हुआ है तो काम वगैरा कब करना है ,इसलिए बिना बताये उक्त परिवार जिनके यह मृत्यु हुआ है उनके यह रात्रि में मीटिंग आयोजन की जाति है तथा काम कब है और कौन नेवता जायेगा कंहा कंहा परिवार रहता है और बंकि फैसला भी उसी रात्रि कालीन मीटिंग में तय होता है , पहले मृत्यु हो जाने पर सभी लोग कफन लेकर जाते थे इस पर भी कटौती कर कफन के स्थान पर उस परिवार को कुछ अर्थ राशी भेट की जाति है , कफ़न वे लोग ही दे सकते है जो उस परिवार के बहुत ही करीबी है बांकी लोग धनराशी के माध्यम से सहयोग करेंगे  यह नियम नया बनाया गया है जिससे उक्त परिवार को सहायता हो पाएगी,,किसी को कंही पर कोई बात समझ न आया हो या कोई सुझाव हो तो हमे जरुर बताये जय हल्बा जय मां दंतेश्वरी (आर्यन चिराम)


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